शब हमने आब-ए-चश्म में बिताई है


अश्क़ को रंग व दर्द को स्वाद बनाते चलो 

श्याम बिहारी श्यामल 

ज़माना क्या जाने हुई कैसे लिखाई है 
ग़ज़ल यह क़ीमत क्या वसूल कर आई है 

ज़हां लगाता रहा सुकूं-ओ-नींद में गोते 
शब हमने आब-ए-चश्म में बिताई है  

क़तई नहीं बाज़ीचा-ए-अल्फाज़ शाइरी 
लहू-ए-रूह यह इसकी रोशनाई है 

अश्क़ को रंग व दर्द को स्वाद बनाते चलो  
तहज़ीब अदब ने शाइर को सिखाई है 

श्यामल हर लफ्ज़ कैसे अज़ाब दरपेश यहां 
बाज़-दफ़ा नग्म ने बात यह बताई है


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शब = रात
बाज़ीचा-ए-अल्फाज़ = शब्दों का खेल
लहू-ए-रूह = आत्मा का रक्त
अज़ाब = पीड़ा
बाज़-दफा = अक्सर





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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